यदि विज्ञान के विकास में मिथकों की उपस्थिति या उसके अप्रत्यक्ष योगदान को वैज्ञानिक समुदाय अस्वीकार करता तो विज्ञान भी पक्षपात और पूर्वाग्रह का दोषी ठहराया जाता। प्रस्तुत पुस्तक में 'मिथकों से विज्ञान तक' की यात्रा की विस्तृत क्षेत्र और लम्बे कालांतर की कहानी कही गई है। जिज्ञासावश जब समाज में अनेक प्रश्न उठ रहे थे, संतुष्टि के लिए उत्तर खोजना या मिथकों को गढ़ना मानवजाति के पास दो ही विकल्प थे, तब विज्ञान-विकास की कहानी की शुरूआत होती है।
उपशीर्षक : ब्रह्मांड के विकास की बदलती कहानी
लेखक : गौहर रज़ा
प्रकाशक : पेंगुइन स्वदेश
ISBN : 9780143470410
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लेखक ने पुस्तक की शुरुआत 'सवाल तो पूछना होगा' नामक कविता से की है, जिसमें ब्रह्मांड की विशालता के बीच विज्ञान के विकास में प्रश्नों के महत्त्व और उनके उत्तरों के अनुकूल हमारे सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव की आवश्यकता के मुद्दे को मजबूती और सुंदरता से उठाया गया है।
विज्ञान क्या है ? अध्याय में विज्ञान की परिभाषा और उसकी सीमा की चर्चा की गई है। विज्ञान-दार्शनिकों और विशेषज्ञों की परिभाषा के द्वंद्व को लिखा गया है। विज्ञान के अनुप्रयोगों के सहयोग से विज्ञान की बदलती तस्वीर को उकेरा गया है। मूलतः विज्ञान और तकनीक के अंतर को स्पष्ट किया गया है। ताकि कारण बताया जा सके कि आखिर तकनीकों को उपयोग में लेने वाला एक आम नागरिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अछूता क्यों रह जाता है ! या एक वैज्ञानिक या विद्यार्थी को दैनिक जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अभाव में दोगला कहना अनुचित क्यों है ! इस तरह विषय रूप में विज्ञान एक वैज्ञानिक की दृष्टि की तुलना में एक आम नागरिक, शिक्षाविद, आध्यात्मिक गुरू, अभियंता, राजनेता या दार्शनिक की दृष्टि से भिन्न होता है। इसी अध्याय में वैज्ञानिक और अवैज्ञानिक दावों को परखने के मापदंडों को बताया गया है तथा उन दावों पर वैज्ञानिकों के टिके रहने या उनके अपने दावों के प्रति ईमानदारी पर प्रश्न उठाया गया है।
आधुनिक विज्ञान की विश्वसनीयता पर लेखक ने लिखा है कि 400 वर्ष पहले तक विज्ञान का धर्मसंगत होना आवश्यक था परंतु स्थिति बदलने से अब धार्मिक दावों के विज्ञान संगत होने के दावे किये जा रहे हैं। और यह परिवर्तन विज्ञान की समझ के कारण निर्मित नहीं हुआ है बल्कि यह परिवर्तन तकनीक के अत्यधिक उपयोग का परिणाम है।
पुस्तक में एक दावा के रूप में यह कथन बार-बार दोहराया गया है कि पूछे जाने वाले प्रश्नों के आधार पर दर्शन और विज्ञान को पृथक किया जा सकता है। दर्शन 'क्यों' का उत्तर देता है, जबकि 'कैसे' का उत्तर विज्ञान देता है। मेरी इस विषय पर पुस्तक के लेखक से पूर्णतः असहमति है। लेखक ने अपने दावे के पक्ष में जो उदाहरण दिए हैं वह बहुत कम और अस्पष्ट हैं।
पुस्तक में ब्रह्मांड, उसके अस्तित्व, उत्पत्ति या विकास की संकल्पना के संदर्भ में मानवजाति के 7-8 हज़ार वर्ष पहले की सभ्यताओं से लेकर अब तक के मिथकों की चर्चा की गई है। उसके बाद एक अलग अध्याय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति और उसके विकास का समय-दर-समय तथ्यात्मक (आंकड़ों सहित) विज्ञान लिखा गया है।
'बुद्धिमान मानव का सफ़र' अध्याय में डेटा संकलन, अमूर्त सोच और उपकरणों का महत्त्व, खगोल, जीव और कृषि क्रांतियों, वैज्ञानिकों की गलतियों और उनको स्वीकार करने के महत्त्व को बताया गया है। और अंतिम अध्याय में वैज्ञानिक ज्ञान और अवैज्ञानिक या धार्मिक ज्ञान के अंतर को स्पष्ट करने के लिए 27 बिंदु लिखे गए हैं।
पुस्तक के जबरदस्त शीर्षक को पढ़कर जो विज्ञान-दर्शन जानने की अपेक्षा थी वह इस पुस्तक में अप्राप्त है। पुस्तक में ब्रह्मांड उत्पत्ति और उसके अस्तित्व संबंधी मिथकों से वैज्ञानिक जानकारी मिलने तक की कहानी लिखी गई है। परन्तु पुस्तक के शीर्षक अनुरूप पुस्तक में 'गणित ज्योतिष से खगोल विज्ञान', 'कीमियागिरी से रसायन विज्ञान' या 'जादू-तंत्र से भौतिक विज्ञान' की यात्रा विषय पर लेखन नहीं किया गया है। जिसके आभाव में विज्ञान की यह छवि निर्मित होती है कि 'विज्ञान में भटकाव है' अर्थात जो आज वैज्ञानिक दावा है, जरूरी नहीं है कि एक वैज्ञानिक अपने उस दावें पर टिके ही रहे। इससे विज्ञान पर विश्वास करने का पक्ष कमजोर होता है।
यह पुस्तक केवल ब्रह्मांड के विकास और मानव मस्तिष्क की वैज्ञानिक जानकारी देकर समाज में पाए जाने वाले मानवीय भेदों (धर्म, जाति और राष्ट्रीयता) को मिटाकर मानवता में वृद्धि करने में सफल है।
Amazing Coverage.🌷🌷⭐💫
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