मापन का महत्त्व

जिस तरह वस्तु विनिमय में मानकता के अभाव में आपसी सामंजस्य की कमी थी ठीक उसी तरह से मापन की क्रियाओं में भी मानक इकाइयों के अभाव के चलते आपसी विश्वास की कमी थी। जब-चाहे-जब व्यापार में शंका जन्म ले लेती थी। जहाँ मुद्रा के आविष्कार ने वस्तु विनिमय को ठोस आधार और समाज को सकारात्मक वातावरण दिया है, वहीं मापन की वैश्विक प्रणाली ने समाज को गति प्रदान की है, क्योंकि क्षेत्रीय या राष्ट्रीय प्रणालियों में सामान्यतया मानक इकाइयों का अभाव हुआ करता था। मापन में राशियों की इकाइयों का मानकीकरण और समाज का वैश्वीकरण साथ-साथ हुआ है। अब वैज्ञानिक समुदाय वैश्वीकरण से भी आगे बढ़कर ब्रह्मांडीय नियतांकों पर आधारित पद्धतियों पर कार्य कर रहा है। जहाँ मानक इकाइयों को बिना बदले केवल मूल राशियों की परिभाषाएँ बदली जा रही हैं। ताकि सभी दिक्-काल में मानक इकाइयों को बराबर प्रयोग में लाया जा सके अर्थात परिभाषा अनुसार मानक इकाइयों में करोड़ो-अरबों वर्षों बाद भी न्यूनतम परिवर्तन परिलक्षित होने चाहिए।

जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं, तो आप अपने विषय के बारे में कुछ जानते हैं; लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते, तो आप का ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक है। ― भौतिकशास्त्री लार्ड केल्विन (‘माप की विद्युत इकाइयों’ पर 3 मई, 1883 का व्याख्यान)

मापन की क्षेत्रीय या राष्ट्रीय प्रणालियों में मुख्य रूप से केवल द्रव्यमान (Mass), लम्बाई (Length) तथा समय (Time) को ही मूल राशियाँ माना जाता था। जैसे कि द्रव्यमान, लम्बाई तथा समय के मात्रक फ्रेंच या मीट्रिक पद्धति के अनुसार क्रमशः ग्राम, सेंटीमीटर तथा सेकेण्ड होते थे और ब्रिटिश पद्धति के अनुसार क्रमशः पाउंड, फुट तथा सेकेण्ड होते थे। अंतरराष्ट्रीय मापन प्रणाली (System International SI-Units) के प्रचलन के साथ ही ताप, विद्युत, ज्योति तीव्रता और पदार्थ की मात्रा को मूल राशियाँ के रूप में तथा समतल कोण और घन कोण को दो पूरक राशियाँ के रूप में शामिल किया गया। इन नौ राशियों के सहयोग से ही अब हम पदार्थ, परिवर्तन और घटनाओं के मापन की सभी राशियों को व्युत्पन्न कर पाते हैं। क्षेत्रफल, आयतन, बल, शक्ति, ऊर्जा, दाब, आवृत्ति, आवेग, पृष्ट तनाव, त्वरण, विद्युत आवेश, धारिता और प्रकाश दूरी आदि सभी व्युत्पन्न राशियाँ हैं जो मूल राशियों तथा पूरक राशियों से व्युत्पन्न होती हैं। अब SI प्रणाली एक तरह से वैश्विक हो गई है।

राशियाँ
द्रव्यमान
लम्बाई
समय
ताप
विद्युत्
ज्योति तीव्रता
पदार्थ की मात्रा
मात्रक
किलोग्राम
मीटर
सेकेण्ड
केल्विन
एम्पियर
कैंडेला
मोल

यदि टोरीसेली की जगह पर कोई हिन्दू दार्शनिक होता (तब विज्ञान को प्राकृतिक दर्शन कहा जाता था) तो वह सिर्फ यह कूट सूत्र बोलकर संतुष्ट हो जाता कि हवा में भार होता है। इसके दबाब की मात्रा के अनुमापन की कोई विधि नहीं बताई जाती; पारे के साथ कोई प्रयोग नहीं किया जाता; बैरोमीटर के स्तम्भ के लिए कोई हिन्दू पास्कल अपने हाथ में लेकर हिमालय पर कभी नहीं चढ़ता। ― बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (‘हिन्दू दर्शन का शुद्ध विज्ञान से सम्बन्ध’ विषय पर 1873 ई. में बोलते हुए)


विज्ञान का सम्बन्ध मूर्त जगत से है इसलिए विज्ञान में मापन की क्रिया महत्त्वपूर्ण हो जाती है। मापन के परिणामों से हमें मुख्य रूप से तीन बातों का पता चलता है। अंकों के द्वारा मानक इकाइयों (की मात्रा) और मात्रकों के द्वारा भौतिक राशियों तथा मापन की पद्धतियों का पता चलता है, परन्तु परिणाम के लिए उपयोग में लायी गई युक्ति, विधि या साधन के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है। लम्बाई को फीता से मापने, स्केल से मापने, हाथी के कदम से मापने, यंत्र से मापने या प्रकाश की गति को आधार मानकर प्राप्त परिणामों से उपयोग में लायी गई किसी भी युक्ति, विधि या साधन की जानकरी का पता नहीं चलता है।

मापन के परिणाम ‘25 किलोग्राम’ में किलोग्राम, द्रव्यमान का एक मात्रक है जिससे हमें MKS या SI पद्धति का पता चलता है। उसी तरह से प्रचलित शब्द हॉर्स पावर और वाट दोनों ही शक्ति के मात्रक हैं। जहाँ हॉर्स पावर, शक्ति का क्षेत्रीय या राष्ट्रीय मात्रक है वहीं वाट, शक्ति का अंतरराष्ट्रीय या वैश्विक मात्रक है। ‘25 किलोग्राम’ में परिमाण 25 का अर्थ MKS या SI पद्धति के 1 किलोग्राम मानक इकाई का 25 गुना होना है।

वैमानिकी एक बहुत ही मजेदार एवं रुचिकर विषय है, जिसमें एक उन्मुक्तता है, आजादी है। आजादी और पलायन, गति और हलचल तथा सरकने एवं प्रवाह के बीच एक जो बड़ा फर्क है, वही इस विज्ञान की गोपनीयता है। मेरे शिक्षकों ने मुझे इन सच्चाइयों के रहस्य बताए हैं। ― डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम (‘अग्नि की उड़ान’ पुस्तक से)

विशेष बिंदु : दो भिन्न पद्धतियों में राशियों की मानक इकाइयों की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है।

विद्युत और आवेश, ऊष्मा और ताप, वेग और चाल, द्रव्यमान और भार, ऊर्जा और शक्ति, गति और तीव्रता, त्वरण और वेग, दाब और तनाव, श्यानता और घनत्व तथा तन्यता और श्यानता आदि में कुछ-न-कुछ भेद है। हमारे लिए इन भेदों को जानना अत्यावश्यक हो जाता है क्योंकि हम जो कुछ देख रहे होते हैं या दो भिन्न देश-काल की विषय-वस्तुओं के बीच तुलनात्मक भेदों को कहने के लिए इन्हीं ठोस आधारों या पारिभाषिक भौतिक राशियों के संज्ञान की आवश्यकता होती है। ― अज़ीज़ राय (‘आग से अंतरिक्ष तक : मानव-जाति की वैज्ञानिक पहुँच’ पुस्तक से)

जल घड़ी द्वारा समय के मापन का एक महत्त्वपूर्ण प्रकरण
“भास्कराचार्य की लड़की का नाम लीलावती था। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि लीलावती का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहेगा। अतः उसका विवाह नहीं करना चाहिए, किन्तु भास्कराचार्य ने उसके विवाह के लिए एक शुभ मुहूर्त निकाल ही लिया। उन्होंने कटोरी बनायी जिसके पेंदे में एक छेद कर दिया। वह छेद इतना छोटा था कि कटोरी को पानी में रखने से कटोरी ठीक एक घंटे में डूब जाती। शुभ मुहूर्त से ठीक एक घंटे पहले भास्कराचार्य ने कटोरी को पानी के एक बर्तन में डाल दिया। शुभ मुहूर्त से कुछ देर पहले लीलावती कुतूहल वश कटोरी के जल का निरीक्षण करने लगी। अनजाने में उसके गहने का एक मोती कटोरी में जा गिरा और उसने छिद्र को ढँक दिया। शुभ मुहूर्त बीत गया और लीलावती आजीवन अविवाहित ही रही।” ― प्रो. ब्रज मोहन (‘गणित का इतिहास’ पुस्तक से)

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