विज्ञान, जटिल है परंतु समझ से बाहर नहीं है।

प्रकृति, उस उलझे हुए धागे के समान है, जिसमें रहस्य रूपी अनेक गांठें हैं। मनुष्य सुलझे हुए छोर से इन गांठों को खोलता है; ताकि वह अधिक-से-अधिक धागे को सुलझा सके। वह जितना अधिक धागा सुलझाता है; वह उतने ही अधिक धागे का उपयोग कर पाता है। संभवतः प्रकृति में गाँठे बनती और बिगड़ती रहती हैं। मनुष्य, जो प्रकृति का अंग है वह भी अपने क्रियाकलापों से इन गाँठों को प्रभावित करता है। वह अनेक विधियों और प्रक्रियाओं से धागे को सुलझाता है। धागे को सुलझे हुए छोर से (अधिक-से-अधिक) सुलझाने की यह पद्धतीय प्रक्रिया, विज्ञान कहलाती है। जबकि सुलझाए धागे को उपयोग में लेने की प्रक्रिया को तकनीक कहते हैं। ज्ञात से अज्ञात को जानने की यह प्रक्रिया जटिल है, क्योंकि यह सहजबोध नहीं है, परंतु ऐसा भी नहीं है कि हम प्रकृति को नहीं जान सकते हैं या वह हमारी समझ से बाहर है; बल्कि प्रकृति को रहस्यमय बनाए रखने के पीछे यही मत रहा है कि हम उसे नहीं जान सकते हैं।

जटिलता के पीछे छिपी एकरूपता की अनुभूति एक लम्बी समयावधि में हुई होगी, जिससे कि घटनाओं में स्थाई संबंधों की सत्ता की खोज हुई। यही सम्बन्ध प्राकृतिक नियम हैं – पदार्थ, जीवन और विचारों के नियम। ― नोबेल पुरस्कार से सम्मानित चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ. अलेक्सिस कैरेल (Alexis Carrel)


निरंतर परिवर्तित होने वाले इस जटिल संसार से जूझकर किसी तरह इस संसार के बारे में कुछ समझ, जुगाड़ लाने का नाम विज्ञान है। यह कोई तार्किक क्रिया नहीं है। वह इसलिए कि जगत से जुगतबाजी में, संसार को इस तरह-उस तरह से अदल-बदल कर, इधर-उधर से अवलोकन करने का कौशल विज्ञान में जरूरी होता है। मेरा विश्वास है कि जब तक विज्ञान के पीछे ऐसी जुगाड़ू समझ नहीं होगी, हम जो कुछ सीखेगें वह एक संभव मिथक से अधिक कुछ नहीं होगा। ― भौतिकशास्त्री फिलिप मोर्रिसन (Philip Morrison)

यदि सच में प्रकृति को जानना हमारे लिए संभव नहीं होता; तो मानव-जाति ये तकनीकी उन्नति कभी नहीं कर पाती। यद्यपि, यह भी एक सच है कि सभी तकनीकी विकास, विज्ञान की देन नहीं है। विज्ञान के इतिहास अनुसार विज्ञान के बिना भी मानव ने कुछ तकनीकी विकास किया है। यह भी एक संभावित सच है कि हम प्रकृति को पूर्णतः यथार्थ रूप में नहीं जान सकते हैं, परंतु इसका यह अर्थ भी नहीं है कि हम हाथ में हाथ धरकर या अपने मतों से उसे रहस्यमय बना दें। वैज्ञानिक समुदाय निरंतर इस जटिलता को सुलझाने के प्रयास में लगा रहता है, वह अपनी सीमाओं को जानता है और उसे स्वीकारता भी है, परंतु वह यह भी मानता है कि प्रकृति, हमारी समझ से बाहर का विषय नहीं है। यदि कोई एक वैज्ञानिक इसे समझ सकता है, तो किसी भी उम्र, लिंग, राष्ट्रीयता या भाषा आदि का व्यक्ति भी उसे समझ सकता है। वैज्ञानिक विधियाँ प्रकृति को समझने-समझाने में बहुत उपयोगी होती हैं। भौतिकशास्त्री गैलीलियो गैलिली का उद्धरण है कि “आप एक आदमी को कुछ भी नहीं सिखा सकते हो; आप केवल उसे स्वयं से खोजने में सहायता कर सकते हो।” और वैज्ञानिक विधियाँ आखिर यही करती हैं जिनके दोहराव से हम पुनः वैज्ञानिक निष्कर्षों तक पहुँचकर खोजों की पुष्टि करते हैं और यह हर दूसरा व्यक्ति कर सकता है।

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