महान दार्शनिक सुकरात के अनुसार “ज्ञान प्राप्ति की ओर पहला कदम परिभाषा है।” दार्शनिक अरस्तू के कथनानुसार सुकरात को सार्वभौमिक परिभाषाओं और ज्ञात ज्ञान के आधार पर तर्कों द्वारा निष्कर्ष निकालने की शैली का श्रेय जाता है। भौतिक राशियों और परिभाषाओं में समानता देखी जा सकती है। हम गणित में अपरिभाषित पदों के आधार पर ही मानक परिभाषाओं की रचना करते हैं ताकि गणितीय पद्धति का निर्माण हो सके। परिभाषाओं में भौतिक राशियों के समान यथार्थता नहीं होती है परिभाषाओं के यथार्थ न होने का अर्थ है कि विषय-वस्तु, घटना या प्रक्रिया की एक से अधिक परिभाषाओं का हो सकना, परंतु हाँ, परिभाषाओं में भौतिक राशियों के समान मानकता, स्पष्टता और व्यापक अर्थ में विशेषताओं की निश्चितता जरूर होती है, क्योंकि हम पहले से परिभाषित विषय-वस्तु, घटना या प्रक्रिया के लिए एक नया शब्द नहीं गढ़ते हैं और न ही नई विषय-वस्तु, घटना या प्रक्रिया के लिए पहले से प्रयुक्त परिभाषित शब्दों का प्रयोग करते हैं, इसलिए हम किसी अस्तित्व, घटना या कार्य को परिभाषित करते समय विशेष रूप से यह ध्यान में रखते हैं कि अनजाने में ही सही कोई अन्य अस्तित्व, घटना या कार्य परिभाषित नहीं होना चाहिए, और परिभाषा में न ही उस शब्द का प्रयोग करना चाहिए जिसे परिभाषित किया जा रहा है।
वैज्ञानिक शब्दावली
वैज्ञानिक शब्दावली
- विज्ञान (Science) : प्रश्नों के उत्तर रूप में प्राप्त संयोग का विधियुक्त पद्धतीय ज्ञान जिसे प्रत्यक्ष परखा या दोहराया जा सकता है, विज्ञान कहलाता है। विज्ञान = विधि + ज्ञान, जहाँ विधि को दोहराव के लिए जाना जाता है तथा ज्ञान निष्कर्ष के रूप में स्वीकार्य होता है।
- वैज्ञानिक विधियाँ (Scientific Methods) : ऐसी प्रक्रियाएँ जिन्हें एकरूपता ढूँढ़ने या प्रदान करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है, विधि कहलाती हैं। दार्शनिक चार्ल्स सैंडर्स पियर्स के अनुसार विधि को ऐसा होना चाहिए कि सभी मनुष्य अंत में एक ही निष्कर्ष पर पहुँचे। इसलिए अंतिम उत्पाद के रूप जब ज्ञान में एकरूपता खोजी जाती या उस की प्राप्ति होती है; तब ऐसे निष्कर्ष प्रदान करने वाली प्रक्रियाओं को वैज्ञानिक विधियाँ कहते हैं। स्वाभाविक रूप से इनका दोहराव किया जा सकता है, इसलिए इनमें प्रमाण के गुण उपस्थित होते हैं।
- वैज्ञानिक पद्धति (Scientific System/Scheme/Paradigm) : अभी तक मान्य, प्रासंगिक, अद्यतन और प्रामाणिक ज्ञान जो आपस में संगत होता है, व्यवस्था का बोध कराता है। व्यवस्था का बोध कराने वाले प्रभावी सिद्धांतों, नियमों, तथ्यों और सहज-बोध के संयुक्त रूप को पद्धति कहते हैं। तथ्यों का सहजबोध, स्वयं-सिद्ध अभिधारणाएँ और सैद्धांतिक व्याख्याएँ वैज्ञानिक पद्धति के तीन मूलभूत तत्व होते हैं। अब या तो प्रत्येक वैज्ञानिक खोज इसी वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर निगमित की जाती है। वैज्ञानिक पद्धति के इस प्रकार्य के लिए विज्ञान-दार्शनिक थॉमस कुह्न ने ‘पैराडाइम (Paradigm)’ शब्द का प्रयोग किया है या फिर वैज्ञानिक विधियों पर आधारित खोजों को इसी पद्धति के संगत होने पर स्वीकार किया जाता है। वैज्ञानिक पद्धति के इस प्रकार्य के लिए रसायनज्ञ जेम्स बी. कोनेन्ट ने ‘स्कीम (Scheme)’ शब्द का प्रयोग किया है। इस तरह से वैज्ञानिक पद्धति किसी विशेष समय के लिए अब तक मान्य, प्रासंगिक, अद्यतन और प्रामाणिक ज्ञान का संगत संकलन होता है, जो मानव-जाति के विकास में सिद्धांतों, नियमों और तथ्यों की स्थापनाओं का एक पड़ाव मात्र है।
- विचार-पद्धति या चिंतन फलक (Paradigm) : सहजबोध, अभिधारणाएँ तथा रचनात्मक सिद्धांतों के समुच्चय को विचार-पद्धति या चिंतन फलक कहते हैं। पैराडाइम शब्द का प्रयोग पद्धति के दार्शनिक पहलू को इंगित करता है जो क्षेत्रीयता पर आधारित होता है अर्थात सहजबोध, अभिधारणाएँ तथा रचनात्मक सिद्धांतों का वर्तमान समुच्चय जब प्रभावी या उपयोगी नहीं रह जाता तब हम वैकल्पिक या नए समुच्चय पर विचार करते हैं।
- सहजबोध (Common Sense) : समान-असमान या सामान्य-असामान्य प्रत्यक्ष अवलोकनों पर आधारित वस्तुओं-पिंडों या घटनाओं के बारे में रंग, रूप, संरचना (आकृति-आकार), समूह, क्रम, सम्बन्ध आदि का बोध होना, सहजबोध कहलाता है। यह वैज्ञानिक पद्धति का पहला तत्व है।
- अभिधारणा (Postulate) : प्रत्यक्ष अवलोकनों और अनुभव पर आधारित ऐसी स्वयंसिद्धियाँ जो सत्य और उस तक पहुँचने के साधनों, तरीकों या मार्गों के बारे में किसी विशेष क्षेत्र या विश्व के सभी व्यक्तियों की उस कालखंड की आमसमझ के रूप में मान्य होती हैं, अभिधारणाएँ कहलाती हैं। यह वैज्ञानिक पद्धति का दूसरा तत्व है। इन्हें प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है।
- वैज्ञानिक व्याख्या (Scientific Explanation) : प्रत्यक्ष घटना और उसके सत्य को वैज्ञानिक सिद्धांतों, नियमों और तथ्यों के सहयोग से समझाना या व्यवहार में पुनः घटित करने को वैज्ञानिक व्याख्या कहते हैं। इसे घटनाओं से उपजे प्रश्नों के उत्तर रूप में दी गई किसी विशेष कालखंड की सबसे सटीक व्याख्या कहा जा सकता है। यह वैज्ञानिक पद्धति का तीसरा महत्त्वपूर्ण तत्व है। ओकहम के दार्शनिक विलियम (William of Ockham) के अनुसार वैज्ञानिक व्याख्या के लिए ‘उस सिद्धांत (theory) को चुनते हैं जो न्यूनतम अज्ञात कारकों का उपयोग करता है।’
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Approach) : घटनाओं की व्याख्या करने या आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संभावनाओं को साकार रूप देने में सहयोगी पद्धति आधारित व्यापक तार्किक दृष्टिकोण को वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहते हैं। माना जाता है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अवलोकन के बजाय आलोचनात्मक दृष्टि की आवश्यकता होती है। आँकड़ों और वैज्ञानिकों की आदर्श कार्यशैली के निष्कर्षों पर आधारित यह दृष्टिकोण ज्ञात से अज्ञात को जानने या उसे स्वीकार्य करने, घटनाओं की सटीक व्याख्या करने, भौतिक साधनों, तकनीकों और यंत्रों को विकसित करने तथा सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम और सहयोगी होता है।
- वैज्ञानिक सोच या अभिवृत्ति (Scientific Temper/Attitude) : सभी के कल्याण और हित को ध्यान में रखते हुए; सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक व्यक्ति विशेष की ऐसी मनोवृत्ति जो एक बेहतर सामाजिक व्यवस्था की मांग और उसके अनुरूप वैज्ञानिक खोजों के प्रभाव में सामंजस्य बनाए रखने के लिए जरूरी होती है, वैज्ञानिक अभिवृत्ति कहलाती है। जहाँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण आवश्यकताओं के आधार पर केवल मांग की पूर्ति करने का प्रयास करता है; वहीं वैज्ञानिक अभिवृत्ति विज्ञान और उसकी सामाजिकता जिसके अंतर्गत आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और न्यायिक व्यवस्थाएँ कार्य करती हैं, पर आधारित होती है, जिससे कि न केवल वैज्ञानिक खोजों और उनके प्रभावों के प्रति पहले से सजग और तैयार रहा जा सके बल्कि आवश्यकतानुसार एक बेहतर विकसित सामाजिक व्यवस्था की प्राप्ति के लिए उनमें परिवर्तन भी हो सके। वैज्ञानिक दृष्टिकोण में विज्ञान की सामाजिकता जुड़ जाने से यह दृष्टिकोण एक विकसित रूप वैज्ञानिक अभिवृत्ति में परिवर्तित हो जाता है। आज विश्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण के इसी विकसित स्वरूप अभिवृत्ति की आवश्यकता जान पड़ी है। वैज्ञानिक अभिवृत्ति से आशय है कि पक्षपात, पूर्वाग्रह, संकीर्णता एवं अंधविश्वास से मुक्ति; वैकल्पिक युक्तियों, साधनों और व्यवस्थाओं पर विचार; प्रतिबंध या रोक के बजाय वैकल्पिक विचारों को परखने में जोखिम लेना, अपने अधिकारों के प्रति सजगता और कर्तव्यों के प्रति निष्ठा, बौद्धिक ईमानदारी, जिज्ञासु प्रवृत्ति, क्षेत्र-काल में दूरदृष्टि के आधार पर निर्णय, नवाचारी, उदार व्यक्तित्व, आलोचनात्मक-मनोवृत्ति, यथार्थ को जानने का निरंतर प्रयास, प्रमाण के अभाव में सत्य को स्वीकार्य न करना तथा दावा एवं निष्कर्षों को परखने की आवश्यकता को महसूस करना आदि।
- रहस्य (Mystery) : जिसे अभी तक सुलझाया नहीं जा सका है अर्थात जिस घटना के पीछे की प्रकृति वर्तमान में ज्ञात न हो। अज्ञात रहने तक ही प्रत्येक रहस्य हमें अलौकिक या चमत्कार मालूम होते हैं, क्योंकि प्रक्रिया ज्ञात हो जाने से प्रत्येक व्यक्ति इसका दोहराव कर सकता है।
- चित्राम (Pattern) : घटनाओं के निश्चित क्रम, आवर्तकाल, परिवर्तन के प्रभाव और भौतिक मानों के शाश्वत तथा कार्य-कारण सम्बन्ध; सह-सम्बन्ध, संभावनाओं, स्वरूपों और रंगों के सार्वभौमिक होने को चित्राम कहते हैं। जहाँ प्रतिमान शाश्वत तथा प्रतिरूप सार्वभौमिक होते हैं। गणित और विज्ञान में मूल रूप से हम इन्हीं चित्रामों (प्रतिमान या प्रतिरूप) की एकरूपता या निश्चितता को खोजते हैं।
- खोज (Discovery) : खोज उस प्रक्रिया या कार्य को कहते हैं, जिसके सहयोग से हम इस दुनिया में पहले से मौजूद भौतिकता के किसी भी रूप की जानकारी अथवा अवस्थित स्थान का पता लगाते हैं, अर्थात खोजकर्ता वह पहला व्यक्ति होता है, जो व्यक्तिगत रूप से उस खोजे गए भौतिकता के रूप अथवा स्थान का दुनिया के साथ सर्वप्रथम परिचय कराता है। इसलिए कुछ लोग गुमी या भूली चीजों को ढूँढ़ने के लिए भी खोजना शब्द का प्रयोग करते हैं। खोजकर्ता समाज के सामने अपनी सूझबूझ के आधार पर खोजी गई भौतिकता या स्थान की जानकारी रखता है। जरूरी नहीं है कि जिस जानकारी के साथ खोजकर्ता हमारा परिचय उस खोजी गई भौतिकता के साथ करा रहा है। वह सच साबित हो! कहने का सीधा-सा अर्थ है कि इस जीवाश्म की खोज अमुक ने की है और उस जीवाश्म की खोज अमुक ने की है। ‘खोजना, एक सामान्य क्रिया है, परंतु जब हम किसी विधि के सहयोग से, किसी विशेष उद्देश्य से या फिर किसी ज्ञात ज्ञान की समझ से अज्ञात को खोजते हैं; तो उसे विज्ञान कहते हैं।’ और जिस विधि या प्रक्रिया के सहयोग से अज्ञात को खोजते हैं उन्हें वैज्ञानिक विधि या प्रक्रिया कहते हैं।
- अवलोकन (Observation) : अवलोकन उस प्रक्रिया या कार्य को कहते हैं, जिसके सहयोग से हम खोजी गई वस्तु अथवा स्थान के बारे में एक निश्चित क्रम में जानकारी एकत्रित करते हैं। अवलोकन एक नजर में खोजी गई भौतिकता के रंग-रूप, आकार और संरचना की जानकारी देता है। एक निश्चित क्रम में जानकारी एकत्रित करने का मूल उद्देश्य केवल इतना-सा होता है कि उस विषय-वस्तु अथवा स्थान का कोई भी पहलू हमारी जानकारी से अछूता न रह जाए। अवलोकन भी एक सामान्य क्रिया है। जिसका उपयोग प्रेक्षण, प्रयोग और परीक्षण तीनों वैज्ञानिक विधियों में किया जाता है। प्रत्यक्ष अनुभवों से एकत्रित सूचनाओं के आधार पर घटनाओं को जानने-समझने की प्रक्रिया प्रेक्षण विधि कहलाती है।
- एकीकरण (Unification) : दो भिन्न प्रकृति को सूत्रबद्ध करना, एकीकरण कहलाता है। एकीकरण उन दो भिन्न प्रकृति में सैद्धांतिक एकरूपता होने पर ही संभव होता है। यदि दो भिन्न प्रकृति एक-दूसरे को प्रभावित करती या आपस में परिवर्तित हो सकती हैं, तो एकीकरण का यह अर्थ कदापि नहीं होता है कि हम आगमन विधि के स्थान पर निगमन, ऊर्जा के स्थान पर पदार्थ या विद्युत के स्थान पर चुम्बक का उपयोग कर सकते हैं।
- वर्गीकरण (Classification) : इस प्रक्रिया के तहत हम अवलोकनओं से प्राप्त जानकारियों के आधार पर खोजी गई विषय-वस्तुओं को एक वर्ग (समूह), श्रेणी या स्तर तथा स्थान को स्थिति प्रदान करते हैं; ताकि वर्गीकृत विषय-वस्तु अथवा स्थान की पुनः पहचान आसानी से की जा सके। इस प्रक्रिया का मूल उद्देश्य वर्गीकृत विषय-वस्तु अथवा स्थान के वस्तुनिष्ठ ज्ञान को चिह्नित करना होता है; ताकि भेद उत्पन्न करने वाले मापदंडों की रचना हो सके तथा एक ही खोज के लिए दोबारा कोई अन्य व्यक्ति आसानी से दावा प्रस्तुत न कर सके।
- विश्लेषण (Analysis) : इस प्रक्रिया के तहत हम वर्गीकृत भौतिकता के रूपों को कुछ निश्चित बिंदुओं या मापदंडों के आधार पर परिभाषित (विश्लेषित) करते हैं, क्योंकि ये गुणात्मक मापदंड उस समूह की विशेषता, गुण या उसके अपने लक्षण होते हैं। फलस्वरूप ये निश्चित बिंदु या मापदंड एक ही समूह में स्थित अनेक भौतिकताओं के रूपों को परिभाषित करने में सहयोगी सिद्ध होते हैं। ऐसा करने से हमारे पास खोजी गई भौतिकताओं अथवा स्थान की जानकारी पहले से अधिक विस्तृत हो जाती है, क्योंकि इस प्रक्रिया के तहत हम वर्तमान में खोजी गई भौतिकता का सम्बन्ध ज्ञात भौतिकताओं के साथ स्थापित कर देते हैं। इसी प्रक्रिया का एक दूसरा पहलू आकलन (Estimate) हमारी जानकारी को और अधिक विस्तार देता है। इसके तहत हम खोजी गई भौतिकता अथवा स्थान के बारे में अनुमान बैठाते हैं, जरूरी नहीं है कि वह अनुमान सही साबित हो। यह अनुमान खोजी गई विषय-वस्तुओं की प्रकृति, उसके व्यवहार और भौतिकीय मानों (राशियों) के विषय में लगाया जाता है। आकलन के द्वारा मापन की प्रक्रिया की नींव रखी जाती है। मापन का सैद्धांतिक पक्ष इसी क्रिया (आकलन) पर आधारित होता है।
- पद्धति (System/Scheme/Paradigm) : जिस किसी ज्ञात ज्ञान के संगत हम उसी ज्ञान पर आधारित नए सिद्धांतों अथवा नियमों का प्रतिपादन तथा तथ्यों की खोज करते या उन्हें स्वीकार करते हैं, उस ज्ञात ज्ञान को हम पद्धति कहते हैं। पद्धति निर्मित करने में उस ज्ञात ज्ञान का उपयोग किया जाता है जो अब तक प्रमाणित, विश्वसनीय और घटनाओं की सटीक व्याख्या करता है। जिसमें अनुभव तथा मान्यताएँ भी शामिल होती हैं। पद्धति से प्राप्त नए सिद्धांतों, नियमों और तथ्यों से यह अपेक्षा रखी जाती है कि इससे मानव-जाति में विकास ही होगा। उदाहरण के लिए, जीवन पद्धति, चिकित्सा पद्धति, शिक्षा पद्धति, दशमलव पद्धति, वैज्ञानिक पद्धति और गणितीय पद्धति आदि।
- प्रक्रिया (Process) : क्रिया या कार्य की ऐसी क्रमबद्ध शृंखला जो किसी निर्णायक अंत में जाकर रूकती है, प्रक्रिया कहलाती है। क्रिया या कार्य के निश्चित क्रम या नियमबद्ध होने से प्रक्रिया की सफलता सुनिश्चित हो जाती है।
- मानक कार्यशैली (Standard working process) : विज्ञान के संदर्भ में वैज्ञानिक जो करें, वही विज्ञान है। जबकि वैज्ञानिक को जो निश्चित रूप से करना चाहिए, वह विज्ञान है। इन दोनों कथनों के भेद से यह निष्कर्ष निकलकर सामने आता है कि विज्ञान की दो वैज्ञानिक कार्यशैलियाँ हैं, जो इस बिंदु पर निर्भर करती हैं कि वैज्ञानिक किन परिस्थितियों में रहकर कार्य कर रहे हैं। वैज्ञानिक, जब वैज्ञानिक व्याख्याओं के लिए ज्ञात सिद्धांतों, प्राकृतिक नियमों और व्यापक आँकड़ों के आधार पर एक से अधिक निदर्शों (models) या परिदृश्यों (scenarios) का सुझाव देते हैं जिनमें से केवल एक ही निदर्श या परिदृश्य वास्तविक होता है; तो ऐसी कार्यशैली मानक कहलाती है, क्योंकि साधारणतया, वैज्ञानिक समुदाय इसी कार्यशैली पर कार्य करता है।
- आदर्श कार्यशैली (Ideal working process) : वैज्ञानिक, जब वैज्ञानिक सत्य के सीमांकन और उसकी उपयोगिता जानने के लिए प्रत्येक परिवर्तियों (variables) और उनके प्रभावों को एक-एक करके परखते हैं, तो ऐसी कार्यशैली को आदर्श या शास्त्रीय कार्यशैली कहते हैं। इस कार्यशैली के अंतर्गत एक कारण का एक निश्चित प्रभाव कार्य करता है। मानक कार्यशैली की वैज्ञानिक व्याख्याओं में वैज्ञानिक सत्य के सीमांकन और उसकी उपयोगिता के इसी ज्ञान का उपयोग किया जाता है। कार्यशैली के प्रयोग में आने वाली कठनाइयों के आधार पर प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में आदर्श कार्यशैली और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में मानक कार्यशैली मुख्य रूप प्रयुक्त होती है।
- विधि (Method) : ऐसे तरीके या उपाय जो कभी असफल और अप्रभावी नहीं होते हैं, विधि कहलाते हैं। जिन विधियों से तथ्य निगमित किये जाते हैं अथवा ज्ञान में वृद्धि होती है उन्हें हम वैज्ञानिक विधियाँ कहते हैं। विधियाँ कार्य-कारण सम्बन्ध अथवा राशियों के सह-सम्बन्ध पर आधारित होती हैं। ज्ञान प्राप्ति के अलावा तकनीक विकसित करने और सामाजिक एकरूपता के पीछे भी विधियाँ कार्यरत होती हैं। स्वाभाविक रूप से विधियों द्वारा सफलता सुनिश्चित होने के कारण इनका दोहराव किया जाता है; ताकि वैज्ञानिक विधियों द्वारा तथ्य जैसे अभौतिक उद्देश्य के सत्य होने की पुष्टि की जा सके।
- प्रमाण (Proof) : सत्य के प्रति समझ विकसित करने के लिए जिस ठोस विषय-वस्तु की आवश्यकता होती है उसे प्रमाण कहते हैं। विज्ञान में विधि, भविष्यवाणी और उपयोगिता को प्रमाण माना जाता है। जिनको भविष्य में भी परखा जा सकता है, इसलिए यह अन्य प्रमाणों की तुलना में अधिक विश्वसनीय होते हैं।
- भविष्यवाणी (Prediction) : भविष्य के बारे में कहे गए ऐसे कथन या दावे जिनका सत्यापित होना भविष्य में सिद्ध होता है कि वे सही थे या गलत थे, भविष्यवाणी कहलाते हैं। ऐसे कथन या दावे जो भविष्य में सिद्ध होते हैं परंतु अनिश्चित भविष्य के बारे में कुछ-न-कुछ निश्चितता प्रस्तुत करते हैं, दो प्रकार के होते हैं - पहला : पूर्वानुमान, कभी-न-कभी निश्चित रूप से उजागर होने वाला यह सत्य भविष्यवाणी का एक भाग होता है जिसे सैद्धांतिक रूप से जानना संभव है; जबकि दूसरा : पूर्वाकलन, पूर्वानुमान का एक भाग होता है जिसे परिकल्पनाओं के आधार पर सुनिश्चित किया जा सकता है।
- पूर्वानुमान (Forecast) : सिद्धांतों और नियमों पर आधारित किसी अज्ञात अस्तित्व और उसको पहचानने में सहायक गुणों की भविष्यवाणी पूर्वानुमान कहलाती है।
- पूर्वाकलन (Estimation) : सैद्धांतिक ज्ञान के आधार पर आँकड़ों या तथ्यों पर निर्भर प्रायोगिक घटना की गणितीय भविष्यवाणी पूर्वाकलन कहलाती है।
- परिकल्पना (Hypothesis) : जब दो तथ्य प्रत्यक्ष या प्रायोगिक रूप से प्रमाणित होते हैं परंतु उनका कोई आपसी सम्बन्ध ज्ञात नहीं होता है तब हम परिकल्पना करते हैं। परिकल्पना इन तथ्यों के आपसी सम्बन्ध के बारे में सदैव एक तार्किक सुझाव प्रस्तुत करती है, जो बाद में प्रयोग द्वारा सत्य या असत्य घोषित होती है। इस प्रकार कल्पनाओं के विपरीत एक वैज्ञानिक परिकल्पना इसी दुनिया और उनके तथ्यों के आपसी सम्बन्ध का विवरण प्रस्तुत करती है; न कि पारलौकिक दुनिया के बारे में कही जाती या सम्भावना जताती है। इसीलिए परिकल्पना इस अर्थ से कल्पना से भिन्न होती है कि उसे परखा जा सकता है। सत्य होने के बाद उसे समाज में सिद्धांत या नियम के रूप में स्वीकार किया जाता है।
- सिद्धांत (Theory/Principle) : वह ज्ञान जो प्रत्यक्ष अवलोकनों, घटनाओं, मानवीय कार्यों और तथ्यों को सार्थक अर्थ देता है, सिद्धांत कहलाता है। वैज्ञानिक सिद्धांतों की यह विशेषता है कि वे संज्ञान में आई नई परिस्थितियों की व्याख्या करने में भी सक्षम होते हैं। विज्ञान के अंतर्गत कोई भी सिद्धांत तब तक सत्य माना जाता है जब तक कि उस पर आधारित सभी पूर्वानुमान या पूर्वाकलन वास्तविक परिणामों से मेल करते हैं।
- ढाँचागत सिद्धांत (Models) : सहजबोध (भाषा, इन्द्रियों और अनुभवों द्वारा) और अभिधारणाओं के अनुरूप तथ्यों को स्वीकार्य करने का अनुकूल वातावरण ढाँचागत सिद्धांत कहलाता है, जो हम देखते, सुनते, चखते, छूते या सूंघते हैं यह सिद्धांत अभिव्यक्ति के लिए उन प्रत्यक्ष दृश्यों या घटनाओं के बारे में हमें भाषा, दृष्टि और अर्थ प्रदान करता है। इस तरह से ढाँचागत सिद्धांत ज्ञान तथा समाज को प्रारम्भिक स्वरूप प्रदान करता है।
- रचनात्मक सिद्धांत (Theory) : प्रत्यक्ष दृश्यों या घटनाओं के बारे में प्रस्तुत व्याख्याओं जिनमें अज्ञात तत्वों का भी समावेश होता है, रचनात्मक सिद्धांत कहलाते हैं। ओकहम के अनुसार वैज्ञानिक सिद्धांतों में कम-से-कम अज्ञात तत्व होने चाहिए। यह सिद्धांत सत्य जानने की दिशा में पहला प्रयास कहलाता है जो कि दार्शनिक होता है।
- आधारभूत सिद्धांत (Principle) : प्रत्यक्ष या ज्ञात ज्ञान पर आधारित अज्ञात को जानने के लिए प्रस्तुत परिकल्पना प्रयोग या व्यवहार में सिद्ध होने के बाद आधारभूत सिद्धांत कहलाती है। यह प्रकृति के अपने मूल सिद्धांत या नियम होते हैं, जिन्हें हम सत्य कहते हैं जो कि वस्तुनिष्ठ होते हैं। जब तक इन सिद्धांतों पर आधारित परिकल्पनाएँ सिद्ध होती रहती हैं या शेष परिकल्पनाओं को अभी तक किन्हीं कारणों से परखा नहीं गया है तब तक सम्बंधित आधारभूत सिद्धांत वैज्ञानिक समुदाय में सत्य-सादृश्यता के रूप में स्वीकार्य रहता है। इस तरह आधारभूत सिद्धांत समाज को जानने के लिए उद्देश्य तथा न्याय करने के लिए आधार प्रदान करता है।
- नियम (Law/Rule) : ऐसी प्रक्रियाएँ जो किसी व्यवस्था या तंत्र के अस्तित्व के लिए आवश्यक या उसके सुचारू रूप से चलायमान होने के लिए उत्तरदायी होती हैं, उन प्रक्रियाओं को नियम कहते हैं। व्यवस्था या तंत्र के संचालन में नियम एक महत्त्वपूर्ण तत्व है।
- तथ्य (Fact) : साधारणतया, जो कुछ भी हमारे सामने प्रत्यक्ष उपस्थित होता है उसे हम तथ्य कहते हैं परंतु विज्ञान के अंतर्गत जिस सत्य का पूर्वानुमान या पूर्वाकलन प्रत्यक्ष-व्यावहारिक पुष्टि होने से पहले सिद्धांतों के आधार पर प्रस्तुत किया जाता है, वैज्ञानिक तथ्य कहलाता है। इस तरह से सिद्धांतों के आधार पर तथ्य सत्यापित होते हैं तथा तथ्यों की प्रत्यक्ष-व्यावहारिक पुष्टि होने से सम्बंधित सिद्धांत प्रमाणित कहलाते हैं। तथ्य सदैव सह-सम्बन्ध, प्रायोगिक परिणाम, सूत्र, समीकरण या रंग-रूप के बारे में होते हैं।
- प्रयोग (Experiment) : जिन कार्यों के पूर्ण होने तक सफलता-असफलता के विषय में संशय बना रहता है ऐसे कार्यों को हम प्रयोग कहते हैं, परंतु विज्ञान के अंतर्गत अनुमानित प्रकृति, उसके व्यवहार और भौतिकीय मान को सिद्ध करने के लिए जिन प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है, उन्हें वैज्ञानिक प्रयोग कहते हैं। इन प्रक्रियाओं को व्यवहार में लाने से पहले ही उनकी पूरी रूपरेखा या प्रारूप परिकल्पना के रूप में निर्मित कर ली जाती है। प्रयोग के दौरान केवल इस बिंदु को ध्यान में रखा जाता है कि परिकल्पना सम्बंधित शर्तों को ध्यान में रखकर सावधानी पूर्वक प्रत्येक बिंदु का क्रमवार उपयोग किया जा रहा है या नहीं। प्रयोग के दौरान होने वाली संभावित त्रुटियों को अलग से ध्यान में रखा जाता है। तत्पश्चात प्रायोगिक परिणाम की तुलना अनुमानित परिणाम से की जाती है।
- परिणाम (Result) : बारीकी तथा व्यवस्थित तरीके से किये गए कार्यों के उद्देश्य प्राप्ति का प्रदर्शन परिणाम कहलाता है।
- निष्कर्ष (Conclusion) : परिणाम आ जाने के उपरांत प्रयोग करने की सार्थकता की समीक्षा या उसका विश्लेषण निष्कर्ष कहलाता है।
- नियतांक (Constant) : वह संख्यात्मक या मात्रात्मक मान जो दो या दो से अधिक घटकों के बीच के सह-सम्बन्ध को व्यक्त करता है तथा प्रणाली के अस्तित्व के लिए आवश्यक होता है। वह गणितीय मान नियतांक कहलाता है। इसी सह-सम्बन्ध को कारण-प्रभाव का सम्बन्ध समझ लेने से प्रणाली में व्यवस्था का बोध होता है।
- क्रांतिक मान (Critical Value) : परिवर्तन की वह सीमा जिसके बाद प्रभाव की प्रकृति बदल जाती है परिवर्तन की उस सीमा का मात्रात्मक मान क्रांतिक मान कहलाता है। इस मान से व्यवस्था में हस्तक्षेप या परिवर्तन कर सकने की सीमा का पता चलता है।
- मापन (Measurement) : कहने को तो हम भौतिकीय राशियों का मापन यांत्रिकी साधनों द्वारा सापेक्ष ज्ञात करते हैं, परंतु जब हम यांत्रिकी साधनों के बजाय वास्तविक परिणामों की तुलना अनुमानित परिणामों से करते हैं तब हमें एक ठोस मापन की जरूरत जान पड़ती है, क्योंकि दोनों परिणामों के मध्य का एक छोटा-सा अंतर भी हमें भौतिकीय राशियों के रूप में स्वयं की स्थिति को पुनः परिभाषित करने को बाध्य करता है, अर्थात दोनों परिणामों के मेल न होने पर हम उस असमानता की माप या अंतर को भौतिकीय राशि के रूप में व्यक्त नहीं कर सकते हैं। और मजेदार तथ्य यह है कि इन भौतिकीय राशियों की माप का तरीका और मापन के यंत्रों की प्रक्रिया दोनों हमें इसी स्थिति में जाकर के ज्ञात होती है। याने कि ‘जहाँ शंका है वहीं निदान है।’ वैश्वीकरण से मापन की प्रणालियों को मानकता प्रदान हुई है। वर्तमान में हम मनचाहे मानकों की मापन-प्रणालियों के स्थान पर ब्रह्मांडीय स्थिरांकों को आधार बनाकर मापन की प्रणालियाँ विकसित करने में लगे हुए हैं, जहाँ वैज्ञानिक समुदाय या सरकारें केवल परिभाषाओं या मापदंडों में परिवर्तन करती हैं; न कि मानकों में परिवर्तन किया जाता है।
- गणना (Count/Calculate) : गणना या गिनना एक सामान्य क्रिया है, परंतु विज्ञान के अंतर्गत इस प्रक्रिया का उपयोग परिवर्तन की दर, भौतिकता की प्रकृति, नए गुणों की उत्पत्ति और उनकी सीमाओं को निर्धारित करने में होता है। जब किसी भी प्रयोग को सावधानी पूर्वक करने के बाद भी यदि उस प्रयोग के किसी एक गुण में लयबद्ध परिवर्तन देखने को मिलता है; तब हम उस प्रयोग की गणना के आधार पर परिवर्तन की दर अथवा भौतिकता की प्रकृति को निर्धारित करते हैं। इसी प्रकार इलेक्ट्रॉनों की गणना (संख्या) परमाणुओं के गुणों की जानकारी देती है।
- प्रतिपादन (Rending) : इस प्रक्रिया के तहत हम भौतिकीय तंत्र (Physical System) और उसके प्रकार्य (Function) को भलीभांति समझने का प्रयास करते हैं। इसके लिए हम दावे के रूप में उस तंत्र को परिभाषित करने के लिए परिकल्पनाएँ प्रस्तुत करते हैं; ताकि उनके प्रयोग से भौतिकीय तंत्र (Physical System) की नियति और उस तंत्र का महत्त्व सही अर्थों में समझ सकें। इस प्रायोगिक प्रक्रिया के दौरान जो परिकल्पना हमारा उद्देश्य पूरा करती है, उस परिकल्पना को हम सिद्धांत या नियम के रूप में प्रतिपादित मानते हैं।
- अध्ययन (Study) : इस प्रक्रिया के दौरान हम भौतिकीय तंत्र के प्रकार्य को भलीभांति संचालित करने वाले कारणों और नियमों को जानने का प्रयास करते हैं, जो उस तंत्र के अपने नियतांक (भौतिक राशियों के रूप में) कहलाते हैं। अध्ययन के अंतर्गत परिसीमन का कार्य भी किया जाता है। जिसके लिए हम आँकड़े एकत्रित करते हैं। फलस्वरूप हम एक निष्कर्ष पर पहुँच पाते हैं। उदाहरण के लिए, 1.4 सौर द्रव्यमान को चंद्रशेखर सीमा कहते हैं। भौतिकता के उसी रूप में बने रहने अथवा प्रकृति तथा गुण परिवर्तन की सीमा को जानने के लिए परिसीमन का कार्य किया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत ही हमें तंत्र की व्यापकता और उस तंत्र या भौतिकता के अस्तित्व का औचित्य ज्ञात होता है।
- अनुसंधान (Research) : अनुसंधान का अर्थ खोज करना ही है, परंतु यह प्रायः ज्ञात भौतिकता के उन गुणों या तथ्यों की खोज है; जिसे अभी तक दुनिया के सामने नहीं लाया गया है। अनुसंधान को तकनीकी प्रक्रिया के अंतर्गत इसीलिए रखा जाता है, क्योंकि ये वही गुण होते हैं जिनसे अज्ञानतावश अपनी तकनीकी क्षमताओं को हम कम आँकने लगते हैं, हम संगत संभावनाओं को असंगत मानने लगते हैं। इन गुणों को हम अक्सर खोजे जा चुके भौतिकता के रूपों में ही ढूँढ़ते हैं। यह कार्य एक तरह से अँधेरे में तीर चलने जैसा होता है, परंतु इस कार्य के पूर्व में लगभग-लगभग इतना तय हो जाता है कि हम जिन गुणों की खोज कर रहे हैं। यदि वे निर्देशित दिशा में पाये जाते हैं, तो वे कितने प्रभावी और उपयोगी सिद्ध होंगे! शाब्दिक अर्थ है कि किसी भी विषय पर क्रमबद्ध तरीके और सम्यक रूप से विचार करने को अनुसंधान कहते हैं।
- आविष्कार (Invention) : विज्ञान, गणित और कला के ज्ञात ज्ञान पर आधारित मानव-जाति की वह कल्पना जिसे मनुष्य साकार रूप देता है, आविष्कार कहते हैं। अधिकतर आविष्कार भौतिक होते हैं। इस प्रक्रिया में मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अपने आसपास के साधनों और संसाधनों की क्षमताओं का उपयोग अपने हित को सँवारने के लिए करता है। जरूरी नहीं है कि मानव अपने पहले प्रयास में ही सफल हो जाए। जबकि सैद्धांतिक रूप से वह यह पहले से जानता है कि इन्हीं साधनों के उपयोग से अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है। आविष्कार निर्माण में सफल न होने का कारण मानव द्वारा उस प्रणाली को पूर्णतः समझ न पाना है, जो वास्तव में उस आविष्कार को चलायमान बनाने के लिए अत्यावश्यक होता है।
- परीक्षण (Testing) : व्यावहारिक रूप में आविष्कार के सफल होने का ज्ञान हमें परीक्षण के बाद ही ज्ञात होता है। बिना परीक्षण के किसी भी आविष्कार को सफल या असफल अथवा उपयोगी या अनुपयोगी नहीं कहा जा सकता है। परीक्षण यह जाँचने के लिए किया जाता है कि आविष्कार चलायमान है अथवा नहीं है या उपयोगी है अथवा नहीं है।
- निरीक्षण (Inspection) : जाँच-पड़ताल इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए की जाती है कि आविष्कार यदि सफल पाया गया है, तो आविष्कार हमारी अनुमानित आवश्यकताओं की पूर्ति में कितना खरा उतरता है और यदि आविष्कार असफल पाया गया है, तो इसके पीछे के क्या-क्या कारण हो सकते हैं। निरीक्षण सदैव पहले से निर्धारित मापदंडों और नियमों के अनुसार किया जाता है। निरीक्षण के अपने नियम या तरीके होते हैं; ताकि वास्तविकता की पहचान आसानी से हो सके।
- अन्वेषण (Exploration) : अपरिचित क्षेत्र, धरातल या स्तर की यात्रा या अध्ययन के दौरान जब हम क्रमवार तरीके से उस क्षेत्र, धरातल या स्तर की जानकारी किसी युक्ति या उपकरणों के माध्यम से एकत्रित करते हैं; तो इस प्रक्रिया को अन्वेषण कहते हैं। अन्वेषण को तकनीकी प्रक्रिया के साथ जोड़ने का मकसद केवल इतना-सा है कि इस प्रक्रिया में तकनीकी ज्ञान का होना आवश्यक होता है।
- तकनीक (Technique) : समस्या के व्यावहारिक समाधान की युक्ति को तकनीक कहते हैं। तकनीक उद्योगों को जन्म देती है।
- आगमन (Inductive) : विशेष दृष्टान्तों (उदाहरणों और तथ्यों) से सामान्य नियमों को विधिपूर्वक प्राप्त करने की क्रिया को आगमन कहते हैं। इस विधि में निष्कर्ष क्षेत्र—काल की व्यापकता पर निर्भर करते हैं, इसलिए इस विधि में समय घटक के रूप में कार्यरत होता है, अर्थात आँकड़े और जानकारियाँ एकत्रित होने में समय लगता है, जो कि एक ही समय में विभिन्न स्थानों या लम्बी समयावधि में एक ही स्थान से एकत्रित किये जाते हैं। फलस्वरूप आगमन विधि का अनुमानित परिणाम समय, स्थान और घटक विशेष पर निर्भर करता है। व्यापक आँकड़े होने से परिणाम के सटीक होने की सम्भावना बढ़ जाती है। ज्ञात से अज्ञात, विशिष्ट से सामान्य, स्थूल से सूक्ष्म तथा मूर्त से अमूर्त की ओर प्रवृत्त होना आगमन की विशेषता है। उदाहरण के लिए, चार चिड़ियों को देख और उनकी आवाजों सुनकर पाँचवीं चिड़िया को सिर्फ देखकर उसकी आवाज के बारे में अनुमान लगा लेना कि वह भी चारों चिड़ियों के समान ही चिंह-चिन्हाती होगी। इस तरह से इस विधि के अंतर्गत एकत्रित जानकारियों से पृथक अप्रत्याशित और नए निष्कर्ष निकालना असंभव होता है, परंतु यह इस विधि की विशेषता है कि क्षेत्र—काल की व्यापकता पर निर्भर नई जानकारियों और आँकड़ों से अप्रत्याशित और नए निष्कर्ष ही प्राप्त होते हैं।
- निगमन (Deductive) : किसी घटना या तंत्र की व्याख्या के लिए प्रतिपादित सिद्धांत जब भविष्यवाणियाँ करने में सक्षम हो जाते हैं तब उस सिद्धांत के संगत तथ्यों की प्राप्ति को निगमन और उस प्रक्रिया को निगमन विधि कहते हैं। इन अप्रत्याशित दावों की भविष्यवाणियों को व्यावहारिक विधियों प्रेक्षण, प्रयोग या परीक्षण द्वारा सत्य या असत्य सिद्ध किया जा सकता है। भविष्यवाणी सत्य हो जाने से सिद्धांत प्रमाणित माने जाते हैं। सिद्धांत से तथ्यों, सामान्य से विशिष्ट, सूक्ष्म से स्थूल तथा अमूर्त से मूर्त की ओर प्रवृत्त होना निगमन की विशेषता है। उदाहरण के लिए, जड़त्व के नियम से यह अनुमान लगाना कि गत्यावस्था और विरामावस्था पदार्थ की दो पूरक अवस्थाएँ हैं। जरूरी नहीं है कि ये निगमित निष्कर्ष वास्तविक दुनिया के सत्य ही हों। इस विधि में दार्शनिकता अधिक होने से एक काल्पनिक दुनिया की रचना करना संभव है परंतु अप्रत्याशित और नए निष्कर्ष स्वीकार्य नहीं किए जाते हैं। साथ ही इस विधि द्वारा निगमित काल्पनिक दुनिया को व्यावहारिक विधियों द्वारा सत्य या असत्य सिद्ध नहीं किया जा सकता है।
- व्यक्तिनिष्ठ या व्यक्तिपरक (Subjective) : व्यक्तिगत अनुभव, भावना, आवश्यकता, समझ, लाभ, राय या मनोदशा पर आधारित परिणाम या इन सब से प्रभावित निष्कर्ष व्यक्तिपरक कहलाते हैं।
- वस्तुनिष्ठ या वस्तुपरक (Objective) : व्यक्तिगत अनुभव, भावना, आवश्यकता, समझ, लाभ, राय या मनोदशा से अप्रभावित निष्कर्ष या इनसे ऊपर उठकर सिद्धांतों पर आधारित उभयनिष्ठ परिणाम वस्तुनिष्ठ कहलाते हैं।
गणितीय शब्दावली
- अपरिभाषित पद : जिन चीजों को इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष देखकर-दिखाकर, चखकर, सूंघकर, छूकर, बनाकर या सुनकर जाना-समझा या समझाया जाता है, क्योंकि उनको शब्दों द्वारा पूर्णतः परिभाषित करना असंभव होता है, उन्हें अपरिभाषित पद कहते हैं। उदाहरण के रूप में बिंदु, रेखा, रंग, स्वाद, गंध, ताप, ध्वनि, मनुष्य, पेड़, क्रियाएँ, समय आदि। अपरिभाषित पदों के अंतर्गत मूलतः अमूर्त चीजें आती हैं।
- प्रमेय (Theorem) : अकाट्य और सुसंगत गणितीय कथनों को प्रमेय कहते हैं। इन गणितीय सत्यों को विचाराधीन रचनाक्रम के संदर्भ में स्वयंसिद्धियों (Axioms) के आधार पर पूरे रचनाक्रम के लिए सही सिद्ध किया जा सकता है, इसलिए इन्हें साध्य भी कहते हैं। इनसे निश्चितता का बोध होता है।
- उपपत्ति (Proof) : पूर्वस्थापित अभिगृहीतों (Axioms), परिभाषाओं और प्रमेयों से पुष्ट अकाट्य प्रमाणों एवं सुसंगत तथ्यों के आधार पर प्रमेय या गणितीय कथन को सिद्ध करना गणित में उपपत्ति कहलाता है। इस तरह से उपपत्ति तार्किक कथनों की शृंखला होती है जिसमें स्वयं-सिद्धियाँ, परिभाषाएँ और खोजे गए प्रमेय या सूत्र गुथे होते हैं। जिसका अंतिम निष्कर्ष एक प्रमेय, गणितीय कथन या सूत्र होता है।
- अमूर्तिकरण : गणितीय निदान के लिए जब हम व्यावहारिक समस्याओं के केंद्रीय प्रश्न को अनावश्यक विस्तार से पृथक करते हैं, तो इस प्रक्रिया को अमूर्तीकरण कहा जाता है।
- निदर्श (Model) : उद्देश्य प्राप्ति के लिए किसी भी अस्तित्व या घटना के (केवल) आवश्यक घटकों का निरूपण निदर्श कहलाता है।
- परिदृश्य (Scenario) : वैज्ञानिक आदर्श कार्यशैली द्वारा ज्ञात ज्ञान के आधार पर भूत या भविष्य की घटनाओं का विशेष रूप से विवेचना करने से जो संभावित चित्र उभर कर सामने आता है उसे परिदृश्य कहते हैं। निदर्श में हम मूर्त से अमूर्त की ओर प्रवृत्त होते हैं; परिदृश्य में अमूर्त से मूर्त की ओर प्रवृत्त होते हैं, इसलिए भिन्न-भिन्न सिद्धांतों के आधार पर एक ही घटना के भिन्न-भिन्न परिदृश्य सामने आते हैं; जैसे कि ब्रह्मांड उत्पत्ति या अंत के संभावित परिदृश्य और पृथ्वी से डायनासौर के अंत के संभावित परिदृश्य आदि।
- सूत्र (Formula) : शाश्वत सत्य जिसके द्वारा घटना, क्रिया, तंत्र, रूप या वस्तु में सामंजस्य का बोध होता है, सूत्र कहलाता है।
- समीकरण (Equation) : किसी घटना, क्रिया या तंत्र की वर्तमान या विशेष स्थिति के गणितीय निरूपण को समीकरण कहते हैं।
- सामान्यीकरण (Generalization) : जब मनुष्य पहले से ज्ञात ज्ञान से तुलना करते हुए सामान्य-असामान्य या समानता-असमानता के आधार पर घटना, क्रिया, गुण, वस्तु आदि में कोई चित्राम (Pattern) खोजता है; तो उन चित्रामों में निहित सामान्य तथ्यों की खोज को सामान्यीकरण कहते हैं।
Paradigm ki upyogita
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी शब्दावली व उपयुक्त परिभाषाएँ।
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