जब मैं अपने स्कूल की याद करता हूँ तो दोस्तों की याद आ जाती है। इसके साथ ही उनका वह कथन मुझे आज भी अच्छे से याद है कि जब उन्हें वैज्ञानिकों और उनकी खोजों को याद रखने में समस्या आयी थी तो उन्होंने खीजते हुए कहा था कि यार, खोज इन्होंने की है और याद हम लोगों को करना पड़ रहा है। आज उनके कथनों पर विचार करने पर पाता हूँ कि वैज्ञानिकों द्वारा खोज करने या आविष्कारकों द्वारा तकनीक विकसित करने से मेरे किसी दोस्त को कोई समस्या नहीं थी। बल्कि मेरे दोस्तों को उन सभी ऐतिहासिक घटनाओं को याद रखने में समस्या थी जिन्हें तब हमें विद्यार्थी होने के नाते विशेष रूप से परीक्षा के लिए याद रखना होता था। क्योंकि वे सभी अन्य ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में भी ऐसा ही विचार रखते थे।
प्रश्न यह उठता है कि क्या विज्ञान का इतिहास विशेष रूप से याद रखा जाना चाहिए या अन्य ऐतिहासिक घटनाओं की तरह उसे भी भुलाया जा सकता है? इतिहास के अध्ययन का उद्देश्य यह जानना होता है कि मानव जाति ने किन परिस्थितियों में किन समस्याओं का समाधान किस तरह से निकाला था और किन गलतियों का दोहराव मानव जाति को नहीं करना चाहिए। परन्तु विज्ञान के इतिहास को विशेष रूप से तब तक याद रखा जाना चाहिए; जब तक वैज्ञानिक पद्धति के संगत वैज्ञानिक खोज या आविष्कार की प्रासंगिकता समाज में बनी रहती है। क्योंकि वैसे भी विकसित समझ के साथ वैज्ञानिक सत्य में संशोधन, विस्तार या एकीकरण हो ही जाता है। प्रासंगिक वैज्ञानिक खोजों या आविष्कारों के इतिहास को हम बौद्धिक संपदा के अधिकार के रूप में याद रखते हैं और इस इतिहास को हमें वैज्ञानिकों या आविष्कारकों के नाम पर याद रखना ही चाहिए।
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मैं अपने बड़े-बुजुर्गों से सुनते आया हूँ कि भारतीय परम्परा में योग्य शिष्य मिलने पर ही गुरू अपनी विशेषज्ञता उस शिष्य को सौंपता है। अन्यथा उसे गोपनीय बनाए रखता है। चर्चाओं के दौरान गोपनीयता का कारण यह निकल कर सामने आया है कि उस ज्ञान-विज्ञान का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के प्रयास में हम भारतीय अधिकतर बार मानव जाति की उपलब्धियों को स्वयं नष्ट कर देते हैं। जबकि क्लोनिंग की सम्भावना का पूर्वानुमान प्रस्तुत करने वाले नोबल सम्मानित जीव-वैज्ञानिक जेम्स डेवी वॉटसन उदाहरण द्वारा समस्या का यह निदान सुझाते हैं कि “मानव प्रजनन के नये संसाधनों और उनके संभावित अच्छे-बुरे परिणामों की जानकारी अधिक-से-अधिक लोगों को उपलब्ध करायी जानी चाहिए।” न कि डर का वातावरण निर्मित कर उस ज्ञान-विज्ञान को नष्ट हो जाने देना चाहिए।
देवताओं को विलक्षणता के साथ-साथ गोपनीयता पसंद है। - ऐतरेय उपनिषद से
मानव उपलब्धियों की प्रक्रिया या सूत्र को गोपनीय बनाए रखने या अपने परिवार तक सीमित रखने के तीन और संभावित उद्देश्य हो सकते हैं। पहला : तकनीक के माध्यम से स्वयं को विलक्षण प्रदर्शित करना, दूसरा : बहुत अधिक धन का लोभ होना या तीसरा : गोपनीयता बनाये रखकर समाज में अपना वर्चस्व बनाये रखना। बौद्धिक संपदा के अधिकार के अंतर्गत विश्व की लगभग सभी सरकारें आविष्कार के लिए पेटेंट और सृजनात्मक कार्यों के लिए कॉपीराइट अधिकार प्रदान करती हैं। थॉमस अल्वा एडीसन और निकोला टेस्ला दो आविष्कारकों के बीच की लड़ाई इसी बौद्धिक संपदा के आधिकार की लड़ाई थी। क्योंकि बौद्धिक संपदा का अधिकार वैज्ञानिक खोजों और आविष्कारों की गोपनीयता के तीनों संभावित उद्देश्यों को संरक्षण प्रदान करता है। इससे कुछ समय तक या सीमा के लिए एकाधिकार प्राप्त हो जाते हैं। फलस्वरूप सरकारों द्वारा नागरिकों को यह अधिकार दिये जाने से विज्ञान की प्रगति की दर में चरघातांकी वृद्धि होती है और हुई है। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि वैज्ञानिकों या आविष्कारकों के कार्य में अब शत प्रतिशत पारदर्शिता आ गई है। शत प्रतिशत पारदर्शिता नहीं आने का कारण प्रो. रसायनज्ञ जेम्स बी. कॉनेण्ट 'साइंस एन्ड कॉमन सेंस' पुस्तक के 'विज्ञान, आविष्कार और राज्य' अध्याय में लिखते हैं कि सरकारें या औद्योगिक कम्पनियाँ वैज्ञानिकों, आविष्कारकों या उनकी संस्थाओं को महंगे शोधकार्य के लिए अनुदान उपलब्ध कराती हैं। जिसके बदले में सरकारें और औद्योगिक कम्पनियाँ आवश्यकतानुसार लाभ लेते हुये सुविधानुसार ही उपलब्धियों के बारे में सीमित जानकारियाँ समाज को उपलब्ध करवाती हैं। जिससे कि समाज में अधिक मात्रा में वैज्ञानिक साहित्य का सृजन होता है और परिवर्धित वैकल्पिक तकनीकों के लिए मार्ग खुल जाता है। इस तरह से बौद्धिक संपदा का अधिकार गोपनीयता के संभावित उद्देश्यों की पूर्ति करते हुये समाज और विज्ञान की प्रगति के लिए फलदायी सिद्ध हुआ है।
बौद्धिक संपदा के अधिकार के रहते मानव जाति की उपलब्धियाँ इतिहास के गर्त में खोती नहीं हैं। बल्कि मानव जाति अब उन उपलब्धियों से आगे बढ़ने के लिए प्रयास करती है। इसलिए सभी देश की सरकारों को मूल अधिकारों की ही तरह बौद्धिक अधिकार को भी बराबर महत्त्व देना चाहिए। ताकि एक ओर वैज्ञानिक साहित्य के द्वारा समाज में विज्ञान और तकनीक के सकारात्मक-नकारात्मक परिणामों और वैकल्पिक तकनीकों के प्रति मनुष्य जागरूक बना रहे; वहीं दूसरी ओर विज्ञान की प्रगति के लिए मनुष्य को प्रोत्साहन भी मिलता रहे।
बौद्धिक संपदा का अधिकार वैज्ञानिक खोजों और आविष्कारों की गोपनीयता के द्वारा विलक्षणता की मनोवृत्ति को बढ़ावा देता है। वहीं दूसरी ओर विज्ञान और तकनीकी प्रगति के लिए मनुष्य को प्रोत्साहित भी करता है। चूँकि विज्ञान के दर्शन में किसी भी व्यक्ति को अन्य की तुलना में विलक्षण नहीं माना जाता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति प्रक्रिया या सूत्र को जानकार प्रदर्शन का दोहराव कर सकता है। इसलिए विज्ञान के सन्दर्भ में कोई भी व्यक्ति प्रक्रिया या सूत्र के अज्ञात या गोपनीय रहने तक ही विलक्षण रहता है। इस तरह से बौद्धिक संपदा का अधिकार समाज में सामंजस्य स्थापित कर वैज्ञानिक पद्धति के निर्माण में सहायक सिद्ध हुआ है।
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