विज्ञान के नहीं बल्कि तकनीक पर मनुष्य की जरूरत से ज्यादा निर्भरता के विरोधी थे

सच यह है कि महात्मा गांधी और सर अल्बर्ट आइंस्टीन आपस में कभी नहीं मिले। परन्तु उनका संपर्क म्यूच्यूअल फ्रेंड रोमां रोलां (Romain Rolland) के माध्यम से हुआ था। सन 1931 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने महात्मा गांधी को संबोधित करते हुए अपना पहला पत्र लिखा था - "आपने अपने कार्यों द्वारा सिद्ध कर दिया है कि अहिंसा के माध्यम से हिंसक लोगों के हृदय पर विजय प्राप्त की जा सकती है। मुझे विश्वास है कि अहिंसा द्वारा विश्व में शांति की स्थापना होगी। आशा है कि मुझे आप से मिलने का अवसर मिलेगा।"

इसके बाद महात्मा गांधी ने अल्बर्ट आइंस्टीन को पत्र में लिखा "आपका सुंदर पत्र पाकर मुझे प्रसन्नता हुई। मैं भी आप से मिलना चाहता हूँ, आप भारत में मेरे आश्रम में पधारें।"

सन 1935 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने दूसरे पत्र में लिखा "मैं आप (महात्मा गांधी) के आदर्शों का सम्मान करता हूँ परन्तु उनके कार्यान्वयन में दो कठिनाइयाँ हैं - पहली कठिनाई : सत्याग्रह का प्रयोग बुद्धिसंगत है, परन्तु उसकी सफलता तानाशाह/अपराधी/आततायी की मानसिकता पर निर्भर करती है। ब्रिटेन के विरोध में सत्याग्रह सफल हुआ है, परन्तु हिटलर के विरोध में उसकी सफलता की आशा करना व्यर्थ है; दूसरी कठिनाई : आपके द्वारा मशीनों का बहिष्कार तर्कसंगत नहीं है, आज के मशीनी युग में उनका परित्याग संभव नहीं है।"

प्रकृति हमारी आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है ; लालच को नहीं

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आइंस्टीन सर महात्मा गांधी के विचारों से पूर्ण रूप से सहमत हो गए थे। उन्होंने अनेक बार, अनेक अवसरों में बिना हिचक के विश्व कल्याण के लिए गांधी मार्ग की वकालत की और कहा कि "इसी मार्ग द्वारा विश्व बंधुत्व की स्थापना की जा सकती है।"



इन फोटोज से स्पष्ट हो जाता है कि महात्मा गांधी विज्ञान के विरोधी नहीं थे बल्कि तकनीक पर मनुष्य की जरूरत से ज्यादा निर्भरता के विरोधी थे।

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