ब्लैक होल का पहला चित्र हमारी कल्पना के अनुकूल क्यों है?

सेतु पत्रिका में पूर्व प्रकाशित लेख

वैज्ञानिकों की अपनी कार्यशैली, उनके द्वारा विधियों के चुनाव या उपलब्धियों के कारण वे समाज में विशिष्ठ स्थान रखते हैं। विज्ञान के अंतर्गत विशेष रूप से कुछ रणनीतियाँ अपनाई जाती हैं। उनमें से एक रणनीति परिकल्पना प्रस्तुत करनी की होती है। जब व्यव्हार में या प्रयोगों द्वारा प्रस्तुत की गयी परिकल्पना सिद्ध हो जाती है तो परिकल्पना के रूप में किया गया दावा अब सिद्धांत के रूप में सत्य माना जाने लगता है।

किसी भी सिद्धांत को वैज्ञानिक समुदाय या समाज तब तक सत्य के रूप में स्वीकार्य करता है जब तक कि विधियों के दोहराव से एक समान परिणाम प्राप्त होते हैं या उस सिद्धांत पर आधारित सभी पूर्वानुमान या पूर्वाकलन वास्तविक परिणामों से मेल करते हैं। किसी भी पूर्वानुमान या पूर्वाकलन की पुष्टि हो जाने के साथ ही सम्बंधित परिकल्पना, सिद्धांत के रूप में सत्य स्वीकार्य ली जाती है परंतु उस सिद्धांत पर आधारित किसी भी एक पूर्वानुमान या पूर्वाकलन के व्यावहारिक प्रयोगों से मेल न होने पर उस सिद्धांत के सत्य होने पर प्रश्न चिह्न लग जाता है। इसलिए वैज्ञानिक तथ्यों का किसी न किसी एक सिद्धांत पर आधारित होना आवश्यक होता है।

हम जो कुछ भी देखते हैं, उसका अर्थ सिद्धांतों के आधार पर ही निकाल पाते हैं। - दार्शनिक इम्मान्यूअल कांट (Immanuel Kant)
Messier-87 आकाशगंगा जिसके केंद्र में वैज्ञानिकों को श्याम विवर होने की सम्भावना थी
हम से 5.5 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर Messier-87 आकाशगंगा के केंद्र में स्थित महाकाय श्याम विवर (ब्लैक होल) का द्रव्यमान सूर्य की तुलना में 6 अरब गुना तथा व्यास लगभग 27 हज़ार गुना अधिक है इसके बावजूद उसे देख पाना या उसकी तस्वीर लेना वैज्ञानिकों के लिए बहुत ही मुश्किल कार्य था। क्योंकि दूरी बढ़ने के साथ-साथ वस्तु छोटी दिखाई देने लगती है और बहुत छोटे दिखाई देने वाले पिंडों को अंतरिक्ष में खोजना सामने के दृश्य को ज़ूम (zoom) करना हुआ, जिसके लिए वैज्ञानिकों को पृथ्वी के बराबर आकार की दूरदर्शी की आवश्यकता थी। इसलिए श्याम विवर की पहली तस्वीर पृथ्वी के आठ भिन्न स्थानों पर स्थित रेडियो दूरदर्शियों के समूहों से प्राप्त आँकड़ों के संयोजन से विकसित की गयी है अर्थात यह तस्वीर दृश्य प्रकाश के आँकड़ों पर आधारित नहीं है जैसा कि सामान्यतः प्रत्येक दृश्य को हम देखते या दूरदर्शी या सूक्ष्मदर्शी के सहयोग से कैमरे द्वारा उसकी तस्वीर को कैद कर लेते हैं।

केटी बउमान (Katie Bouman) पृथ्वी के आठ भिन्न स्थानों से एकत्रित आँकड़ों के साथ
10 अप्रैल 2019 को पहली बार दुनिया के सामने आयी श्याम विवर की पहली वास्तविक तस्वीर इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसे 52,42,880 गीगाबाइटस (5 पेटाबाइटस) आँकड़ों के विश्लेषण से प्राप्त किया गया है फलस्वरूप यह पहली ‘वास्तविक’ तस्वीर है। जबकि इस तस्वीर के पहले तक हमने जितनी भी तस्वीरें देखीं हैं वे सभी सिद्धांतों पर आधारित कंप्यूटर द्वारा निर्मित की गयी काल्पनिक तस्वीरें हैं। प्रश्न यह उठता है कि श्याम विवर की पहली वास्तविक तस्वीर कंप्यूटर द्वारा निर्मित काल्पनिक तस्वीर से मेल क्यों कर रही है?

श्याम विवर का पहला वास्तविक चित्र
वैज्ञानिकों के लिए श्याम विवर की पहली तस्वीर प्राप्त करना इसलिए बड़ी उपलब्धि है क्योंकि यह तस्वीर अल्बर्ट आइंस्टाइन द्वारा प्रतिपादित साधारण सापेक्षता सिद्धांत की पुष्टि करती है। खगोल-भौतिकशास्त्री कार्ल श्वार्ज़स्चिल्ड (Karl Schwarzschild) ने साधारण सापेक्षता सिद्धांत से निष्पत्ति रूप में श्याम विवर के अस्तित्व होने की बात कही थी। जिसे स्वयं अल्बर्ट आइंस्टाइन ने यह कहते हुए नकार दिया था कि ‘श्वार्ज़स्चिल्ड, आपकी गणना एकदम ठीक है परंतु आपकी भौतिकी अच्छी नहीं है।’ क्योंकि अल्बर्ट आइंस्टाइन सहित वैज्ञानिकों की तात्कालिक समझ के अनुसार श्वार्ज़स्चिल्ड के निष्कर्ष तब असंगत थे। ठीक इसी तरह भौतिकशास्त्री सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर द्वारा श्याम विवर सम्बन्धी तारों के चरण, उसके व्यव्हार और चंद्रशेखर नियतांक की गणनाओं के बारे में उन्हीं के गुरु प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री सर आर्थर स्टेनली एडिंगटन (Arthur Stanley Eddington) ने भी एक समय उनको गणनाओं को भूल जाने के लिए कहा था।

गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में अंतरिक्ष की वक्रता प्रकाश के मार्ग को भी विक्षेपित कर देती है। सूर्यग्रहण के दौरान जब प्रेक्षण द्वारा सन 1919 में यह निष्पत्ति सिद्ध हो गयी तो इसे साधारण सापेक्षता सिद्धांत की पुष्टि मान लिया गया। परंतु किसी भी वैज्ञानिक सिद्धांत के सत्य बने रहने के लिए आवश्यक है कि विधियों के दोहराव से एक समान परिणामों की प्राप्ति हो या उसकी सभी निष्पत्तियाँ सदैव सही सिद्ध होती रहें। इसलिए साधारण सापेक्षता सिद्धांत के सत्य बने रहने के लिए श्वार्ज़स्चिल्ड द्वारा प्रस्तुत श्याम विवर के अस्तित्व का पूर्वानुमान और उसके व्यव्हार के पूर्वाकलन की पुष्टि की आवश्यकता थी। अंततः श्याम विवर की पहली वास्तविक तस्वीर ने साधारण सापेक्षता के सिद्धांत की एक बार फिर पुष्टि करके इस सिद्धांत को सत्य बनाये रखा है।

एक सिद्धांत प्रयोग द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है लेकिन कोई भी रास्ता प्रयोग से सिद्धांत के जन्म तक नहीं जाता है।” यह उद्धरण ‘दी संडे टाइम्स’ समाचार पत्र में 18 जुलाई 1976 को अल्बर्ट आइंस्टाइन के नाम से प्रकाशित हुआ था, परंतु ध्यान रहे कि अल्बर्ट आइंस्टाइन का देहांत सन 1955 ई. में ही हो गया था। कुछ स्थानों में इस उद्धरण को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रसायनज्ञ मैनफ्रेड ईगेन (Manfred Eigen) के नाम से प्रचारित किया गया है तथा सिद्धांत आधारित तथ्यों के इसी मुद्दे पर अल्बर्ट आइंस्टाइन का एक दूसरा उद्धरण भी है कि “यदि तथ्य सिद्धांतों के संगत नहीं हैं; तो उन्हें (तथ्यों को) बदल डालो।



अब चूँकि श्याम विवर का अस्तित्व साधारण सापेक्षता सिद्धांत की पुष्टि के लिए अत्यावश्यक था तो स्वाभाविक है कि इस अंतहीन अंतरिक्ष में श्याम विवर को खोजकर उसकी वास्तविक तस्वीर लेने में साधारण सापेक्षता सिद्धांत सहायक सिद्ध हुआ होगा। जी हाँ, श्याम विवर की पहली तस्वीर लेने में ज्ञात सिद्धांतों और नियमों की सहायता ली गयी है। चूँकि श्याम विवर की श्वार्ज़स्चिल्ड त्रिज्या द्वारा निर्मित इवेंट होराइजन क्षेत्र से प्रकाश भी बाहर नहीं निकल सकता है। इसलिए स्वाभाविक रूप से श्याम विवर हमें दिखाई नहीं देता है और सम्बंधित जानकारी भी हमें प्राप्त नहीं हो सकती है। परंतु उस श्याम विवर के आसपास प्रकाश उत्सर्जित करने वाले तारों और गैसों की गतिशीलता उसके बीच में किसी भारी गुरुत्वाकर्षण बल होने अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से श्याम विवर की उपस्थिति का बोध कराती है। इसी तरह से संवेग संरक्षण के नियम, ज्वार-भाटा बल (tidal force) के प्रभाव, जेट प्रभाव, तारों और गैसों के आपसी घर्षण से उत्सर्जित रेडिएशन आदि के द्वारा श्याम विवर का एक सैद्धांतिक स्वरूप उभरकर सामने आता है। जो श्याम विवर की सैद्धांतिक पहचान है। इसी पहचान के आधार पर जब “इवेंट होराइजन टेलिस्कोप” प्रणाली द्वारा एकत्रित सम्पूर्ण आँकड़ें का विश्लेषण किया गया, तब जाकर उस आँकड़े में इस पहचान से मिलता-जुलता एक चित्र सामने आया। जो अब श्याम विवर की पहली तस्वीर है। सबसे मजेदार और जानने योग्य बिंदु यह है कि कंप्यूटर को विश्लेषण करने के लिए जो कलन विधि के निर्देश दिये जाते हैं उसके अंतर्गत सिर्फ (सिद्धांत आधारित) पहचान बतायी जाती है न कि पहचान से सम्बंधित विशिष्ट मान निविष्ट किये जाते हैं। क्योंकि संभव है कि तब इतने बड़े आँकड़ों के विश्लेषण के बाद भी कोई सफलता हाथ नहीं लगेगी और साथ ही पूर्वाग्रह का दोष भी लगेगा।

श्याम विवर के आसपास तेजी से घूमते तारे और गैस
श्याम विवर के ‘पहले’ वास्तविक चित्र के दावे के लिए आवश्यक था कि उस तस्वीर में पूर्वाग्रह का दोष न हो तथा साधारण सापेक्षता सिद्धांत के सत्य बने रहने के लिए आवश्यक था कि ब्लैक होल की पहली तस्वीर का हमारी कल्पना के अनुकूल पाया जाना। इसलिए आँकड़ों पर आधारित श्याम विवर की ‘पहली’ वास्तविक तस्वीर कंप्यूटर द्वारा निर्मित काल्पनिक तस्वीरों से मेल कर रही है।

IBM 7040 कंप्यूटर द्वारा निर्मित श्याम विवर का पहला काल्पनिक चित्र
दार्शनिक सर फ्रांसिस बेकन के कथनानुसार “विज्ञान, बिना किसी पूर्वाग्रह के अवलोकनों को एकत्रित करने का तरीका है।” रसायनज्ञ जेम्स बी. कोनेन्ट जैसे अन्य कई वैज्ञानिकों, विज्ञान-संचारकों और दार्शनिकों ने सर फ्रांसिस बेकन के इस कथन पर आपत्ति जतायी और कहा है कि हम शायद ही कभी कोई कोरी स्लेट से शुरुआत करते हैं। श्याम विवर के इस वास्तविक चित्र को विकसित करने में जुड़ी ईमानदारी, वैज्ञानिकों की कार्यशैली और रणनीति की सफलता को सिद्ध करती है कि वैज्ञानिक समुदाय न ही कोरी स्लेट से शुरुआत करता है और न ही पूर्वाग्रह से ग्रसित होता है।

स्रोत : भौतिकशास्त्री डॉ. परवेज हूडबॉय (Pervez Hoodbhoy) के व्याख्यान से साभार

2 टिप्‍पणियां:

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