ज्ञान और विज्ञान में क्या भेद है?

ज्ञान और विज्ञान में केवल इतना ही भेद है कि ज्ञान, हमें सिद्धांत, नियम, तथ्य अथवा जानकारी के रूप में ज्ञात होता है, जबकि ज्ञान और उस तक पहुँचने के माध्यम (विधि) का संयुक्त नाम विज्ञान है, इसलिए विज्ञान को विशेष ज्ञान कहा जाता है, परंतु गणितज्ञ जैकब ब्रोनोव्स्की (Jacob Bronowski) तथा थॉमस हेनरी हक्सले सहित औरों का भी मत है कि विज्ञान में विशेष जैसा कुछ नहीं होता है। ज्ञान में नाहक ही ‘वि’ उपसर्ग लगाकर उसे विज्ञान कह दिया गया है। शायद इसीलिए गणितज्ञ जैकब ब्रोनोव्स्की अपनी पुस्तक ‘दी कॉमन सेंस ऑफ़ साइंस’ में गणित को भी विज्ञान बताने की चेष्टा कर बैठते हैं। इसके पीछे उनके तर्क का आधार ‘संयोग के विचार’ में गणितीय पक्ष अर्थात सांख्यिकी की उपस्थिति का होना है। यदि विज्ञान में विशेष जैसा कुछ भी नहीं है तब तो ऐतिहासिक सत्य जैसे कि ‘भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ।’ यह भी विज्ञान है तथा हम भारतीय प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं, यह ज्ञान भी विज्ञान है। दावा अनुसार इन उदाहरणों के सामने आने के बाद अब यह बहाना नहीं चलेगा कि विज्ञान तो अद्यतन ज्ञान है, ऐतिहासिक ज्ञात ज्ञान को हम विज्ञान नहीं कहते हैं। तब फिर नए तर्क के विरोध में लेखक का उदाहरण है कि आर्किमिडीज़ के सिद्धांत के बारे में दावा के पक्षकारों का क्या बहाना होगा, जो लगभग तेईस सौ वर्ष पुराना है। सोचिए... सोचिए!!

उपरोक्त उदाहरण और तर्क सामने रखे जाने से अब संभवतः यह तथ्य पाठकों को भी समझ में आ रहा होगा कि प्रत्येक ज्ञान या सत्य, विज्ञान नहीं होता है। विज्ञान के लिए उस खोजे हुए ज्ञान को स्वीकारने की शर्तें ही उस ज्ञान को विशेष बनाती हैं, न कि विज्ञान किसी विशेष के बारे में होता है। जिसकी पहली शर्त होती है कि वह ज्ञान विधियुक्त होना चाहिए; ताकि उस विधि के दोहराव से हम पुनः उसी ज्ञान को प्राप्त कर सकें। इस तरह विधियुक्त ज्ञान में ही ज्ञान के प्रामाणिक होने के गुण अन्तर्निहित होते हैं। इसीलिए वैज्ञानिक खोज प्राचीन हो सकती है परंतु विज्ञान में उसकी प्रासंगिकता प्राचीन नहीं होती है; बल्कि वह नए शोधों से परिष्कृत होती रहती है। चूँकि एक समान परिणाम की प्राप्ति हेतु विधियों को किसी भी उम्र, लिंग, जाति आदि के व्यक्तियों द्वारा किसी भी समय और कहीं भी दोहराया जा सकता है। फलस्वरूप वैज्ञानिक सत्य के सार्वभौमिक, व्यक्तिपरक (Subjective) व शाश्वत होने का भ्रम उत्पन्न हो जाता है, जिससे कि हममें से ही कुछ व्यक्ति दर्शन, अध्यात्म, गणित और इतिहास को भी विज्ञान समझ बैठते हैं।

विज्ञान, कुल संचित ज्ञान का केवल एक भाग है। ― रसायनज्ञ प्रो. जेम्स बी. कोनेन्ट

स्पष्ट रूप से विज्ञान किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान के बारे में नहीं है अर्थात विज्ञान विशेष के बारे में नहीं है। बल्कि इसके विपरीत वह वस्तुनिष्ठ ज्ञान है। सामान्यीकरण से प्राप्त तथ्य या ज्ञान जो सिद्धांतों पर आधारित होता है विज्ञान जगत में विशेष कहलाता है। विज्ञान का विधियुक्त, पद्धति आधारित, अद्यतित, सम्यक और उपयोगी होना उसे विशेष बनाता है, इसलिए विज्ञान कुल संचित ज्ञान का केवल एक भाग है।


जिस तरह ज्ञान, हमें सिद्धांत, नियम, तथ्य अथवा जानकारी के रूप में ज्ञात होता है। जहाँ न्याय दर्शन के अनुसार चार प्रकार के सिद्धांत बतलाये गए हैं। सर्वतंत्र, प्रतितंत्र, अधिकरण एवं अभ्युप्गम सिद्धांत। उसी तरह से विज्ञान में भी आधारभूत सिद्धांत (Principles), रचनात्मक सिद्धांत (Theories) और ढांचागत सिद्धांत (Models) की चर्चा की जाती है। साथ ही नियमों के रूप में प्राकृतिक नियम, तथ्यों के रूप में सूत्र और नियतांक तथा जानकारियों के रूप में आँकड़े और समीकरण महत्त्वपूर्ण होते हैं।

ज्ञान और विज्ञान के भेद को स्पष्ट करने में सहयोगी महत्त्वपूर्ण सूत्र
विज्ञान, प्रत्यक्ष है परंतु सहजबोध नहीं है।
विज्ञान, जटिल है परंतु समझ से बाहर नहीं है।
विज्ञान, अप्रत्याशित खोज है परंतु अलौकिक ज्ञान नहीं है।
विज्ञान, विधियुक्त ज्ञान है केवल ज्ञान या विधि नहीं है।
विज्ञान, अद्यतन ज्ञान है परंतु वर्तमान का विवरण नहीं है।
विज्ञान का विधियुक्त होना विशेष है; न कि विज्ञान विशेष के बारे में है।
विज्ञान, संयोग का ज्ञान है परंतु संयोगवश प्राप्त ज्ञान नहीं है।
परिकल्पना, विज्ञान में सहयोगी सिद्ध होती है, परंतु पारलौकिक विवरण प्रस्तुत नहीं करती है।
ज्ञात ज्ञान से अज्ञात को पाने की प्रक्रिया क्रमबद्ध है परंतु विज्ञान, क्रमबद्ध प्राप्त ज्ञान नहीं है।
प्रयोग की सफलता पूर्वानुमान पर निर्भर करती है परंतु प्रायोगिक निष्कर्ष में पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए।
अनुभव, वैज्ञानिक खोज के लिए व्यक्ति को प्रशिक्षित कर सकता है परंतु विज्ञान, अनुभवजन्य ज्ञान नहीं है।
विज्ञान में व्यावहारिक विधियों से सिद्धांत प्रमाणित होते हैं परंतु व्यावहारिक लक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं।
भविष्यवाणियाँ सिद्धांतों और नियमों को प्रमाणित करती हैं परंतु विज्ञान भविष्यवाणी नहीं करता है।
वैज्ञानिक खोज व्यक्ति करते हैं परंतु विज्ञान, व्यक्तिनिष्ठ ज्ञान नहीं है। 
अंततः, विज्ञान एकरूपता खोजता है परंतु दुनिया को एकरूपता प्रदान नहीं करता है।

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